रसखान के पद


रसखान - कविता कोश
kavitakosh.org/kk/रसखान
रसखान - कविता कोश भारतीय काव्य का विशालतम और अव्यवसायिक संकलन है जिसमें हिन्दी उर्दू, भोजपुरी, अवधी, राजस्थानी आदि पचास से अधिक भाषाओं का काव्य है। ... भक्तिकाल की कृष्णाश्रयी शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। वृंदावन में ...

दोहे | रसखान के दोहे | Dohe by Raskhan - Like
www.bharatdarshan.co.nz/.../65/dohe-raskhan.html
रचनाकार: रसखान | Raskhan. प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥ कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार। अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥ बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि। सुद्ध कामना ते रहित, ...

Raskhan Ke Krishna by Manisha Kulshreshtha
hindinest.com/bhaktikal/02310.htm
रसखान के कृष्ण. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन। जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन। पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन। जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।

रसखान के दोहे | हम हिन्दी भाषी
https://hindibhashi.wordpress.com/.../रसखान-के-दो...
रसखान के दोहे रसखान प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥ कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार। अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥ काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य। इन सबहीं ते प्रेम है, परे ...

रसखान
www.ignca.nic.in/coilnet/raskhn.htm
कई तो रसखान के जन्म स्थान पिहानी अथवा दिल्ली को बताते हैं, किंतु यह कहा जाता है कि दिपाली शब्द का प्रयोग उनके काव्य में ... रसखान ने कृष्ण के बाल- लीला संबंधी कुछ पदों की रचना की है, किंतु उनके पद कृष्ण के भक्त जनों के कंठहार बने हुए हैं।

रसखान। काव्यालय | Raskhan. Kaavyaalaya: The House ...
kaavyaalaya.org/raskhan.shtml
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥ या लकुटी अरु ...

रसखान - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर
bharatdiscovery.org/india/रसखान
रसखान ने भक्तिरस के अनेक पद लिखे हैं, तथापि उनके काव्यों में भक्तिरस की प्रधानता नहीं है। वे प्रमुख रूप से शृंगार के कवि हैं। उनका शृंगार कृष्ण की लीलाओं पर आश्रित है। अतएव सामान्य पाठक को यह भ्रांति हो सकती है कि उनके अधिकांश पद भक्ति ...

सोहत है चँदवा - रसखान के पद | हिन्दीकुंज,Hindi ...
www.hindikunj.com › रसखान
सोहत है चँदवा सिर मोर को, तैसिय सुन्दर पाग कसी है। तैसिय गोरज भाल बिराजत, तैसी हिये बनमाल लसी है। 'रसखानि' बिलोकत बौरी भई, दृग मूंदि कै ग्वालि पुकार हँसी है। खोलि री घूंघट, खौलौं कहा, वह मूरति नैनन मांझ बसी है। Share to: ...

संत कबीर: रसखान के पद
nathjimaharajkabir.blogspot.com/.../blog-post_4143.h...
यह पद रसखान के भजन संग्रह से उद्धृत है। कृष्ण भक्त रसखान कहते हैं कि यदि मनुष्य के रूप में जन्म लें तो गोकुल के ग्वाला बनकर आएं। पशु के रूप में नंद की गाय बनें। पत्थर हों तो गोवर्धन पर्वत का जिसे कृष्ण अपनी अंगुली पर उठाया और पक्षी ...

रसखान - विकिपीडिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/रसखान
रसखान कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों मेंरसखान का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। रसखान को 'रस की खान' कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण

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